विकास एवं फैलते उग्रवाद के बीच संबंध

    संयुक्त राष्ट्रीय महासचिव कोफी अन्नान ने एक बार कहा था "जब तक विश्व में असंख्य लोग इससे पीड़ित एवं वंचित है। तब तक कोई भी व्यक्ति सहज और सुरक्षित महसूस नहीं कर सकता"। अत:अविकसित समाज का कष्ट पूर्ण तथा अभाव भरा जीवन निसंदेह आंतरिक सुरक्षा के ऊपर प्रभाव डालता है।

      सामान्य शब्दों में हमारे देश में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां जीवन की आधारभूत आवश्यकताएं जैसे रोटी ,कपड़ा, और मकान लोगों के लिए बहुत बड़ी समस्या है। इन क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं जैसे सड़क, पीने का पानी तथा बिजली का अभाव है। ऐसे मामलों में आर्थिक सुरक्षा की भावना का अभाव अनेक प्रकार के अपराध का समाज विरोधी गतिविधियों को जन्म देता है।

6.1 विकास के मुख्य आयाम 

1. आर्थिक विकास- रोजगार, प्रति व्यक्ति आय, औद्योगिक विकास

2. सामाजिक विकास - स्त्री पुरुष में समानता, महिला सशक्तिकरण ,आनेकेवाद ,विविधता का आधार ,बच्चों की शिक्षा सामाजिक सुरक्षा इत्यादि।

3. राजनीतिक विकास - प्रजातंत्र ,राजनीतिकश अधिकार तथा नागरिक स्वतंत्रता।

4. मानव अधिकार - स्वास्थ्य ,शिक्षा ,मानव अधिकार आत्मविश्वास एवं इज्जत भरा जीवन।

5. मूलभूत सुविधाओं का विकास - यातायात ,संचार, बड़ी सड़कें ,रेलवे की सुविधा ,टेलीफोन की सुविधा, फाइबर ब्रांडबैंक नेटवर्क।

6. दीर्घकालीक विकास - पारिस्थितिक सुरक्षा, वायुमंडल सुरक्षा, जैव विविधता सुरक्षा।

7. प्रशासनिक विकास - सुशासन ,समय पर आम सुविधाओं की उपलब्धता, सरकार में जनभागीदारी, पारदर्शिता ,जिम्मेदारी व जनहित हिताय शासन।

6.2 उग्रवाद के बढ़ने के कारण

1. जल -जंगल -जमीन - सदियों पुराने आदिवासी, वन संबंध में रुकावट ,पारंपारिक भूमि अधिकारों का हनन, बगैर उपयुक्त भरपाई तथा पुनर्स्थापन के भूमि अधिग्रहण करना।

2. आर्थिक- बेरोजगारी, गरीबी ,मूलभूत सुविधा, जैसे यातायात के साधनों का आभार ,चिकित्सा सुविधाओं का अभाव ,शिक्षा सुविधा, संचार तथा बिजली का अभाव ,और गरीब अमीर के बीच बढ़ती दरार।

3. सामाजिक:- सामाजिक असमानता, मानव अधिकारों का हनन ,प्रतिष्ठा पूर्ण जीवन पर आघात।

4. राजनीति:- सरकार में जनभागीदारी का अभाव।

5. सुशासन का अभाव: - अच्छे प्रशासन का अभाव, दूरदराज के क्षेत्र में सरकारी तंत्र का अभाव ,कमजोर कानून अनुपालन , सरकारी योजनाओं का प्रबंध, और भ्रष्टाचार।

6. जाति संबंधी 

 7. भौगोलिक 

8. ऐतिहासिक

  प्रथम तीन कारण विकास के अभाव से जुड़े हैं तो वह उग्रवाद को सीधे तौर पर बढ़ावा देते हैं। चौथे तथा पांचवें कारण को मूल कारण नहीं कहा जा सकता परंतु यह ऐसे विषय हैं जो पहले से विद्यमान उग्रवाद की भावनाओं को हवा देते हैं और इसी भावना को उग्रवादीअपनी उग्र विचारधारा को फैलाने में उपयोग करते हैं। छठे सातवे और आठवे कारण विकास से जुड़ी नहीं है और इनकी जड़ इतिहास भूगोल तथा जाति व्यवस्था में है।


6.3 उग्रवाद को कम करने में सामाजिक ,आर्थिक विकास का सकारात्मक प्रभाव 

   सामाजिक तथा आर्थिक विकास नीतियों की शांति एवं स्थिरता बनाए रखने में अहम भूमिका है। समाज के विकसित वर्ग स्वयं ही उग्रवाद को समर्थन रोकने हेतु कार्य करना प्रारंभ कर देते हैं जिससे आतंकवादियों को अपने कैडर हेतु नई भर्ती करने में कठिनाई होती है। कई आतंकवादी संगठन ऐसे समुदायों से नए सदस्यों को आकर्षित करते हैं जिससे अपनी समस्याओं को सुलझाने हेतु सामान्य तौर पर आतंकवाद का रास्ता ही आसान दिखाई देता है। कुछ आतंकवादी दल नए सदस्य बनाने हेतु आर्थिक सहायता के अतिरिक्त परिवार को सुरक्षा भी देते हैं। ऐसी स्थिति में सामाजिक तथा आर्थिक नीतियां ही लोगों की समस्याओं को निपटा कर तथा समुदायों को आतंकवाद के विरुद्ध एक स्वस्थ विकल्प देकर   लोगों को आतंकवाद की ओर आकर्षित होने से रोक सकती है। उग्रवाद को रोकने हेतु विकास की नीतियों की सफलता उसके अनुपालन पर निर्भर करती है। इस संदर्भ में सफल सामाजिक तथा आर्थिक विकास नीतियां म है जो:

1. समुदाय के नेताओं के साथ विचार विमर्श के बाद बनाई जाती है।

2.आवश्यकता एवं मूल्यांकन पर आधारित और सुरक्षित समुदाय विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु बनाई गई है।

3. ऐसी वितरण प्रणाली की व्यवस्था जिसमें निष्पक्षता एवं समुचित वित्तीय प्रबंध सुनिश्चित हो।

सामाजिक तथा आर्थिक विकास नीतियों को आतंकवाद को रोकने हेतु एक छड़ी के रूप में उपयोग किया जा सकता है। विकास से जुड़ी राशि को हिंसा से दूर रखने की शर्त पर वितरण किया जा सकता है जिसे उग्रवाद को रोकने के लिए इसे एक छड़ी के रूप में उपयोग किया जा सकता है। हमारे यहां त्रिपुरा, मिजोरम तथा उत्तर पूर्व क्षेत्र के अन्य भागों का ऐसा उदाहरण है जहां ठोस विकास के द्वारा भर्ती उग्रवाद पर सफलतापूर्वक अंकुश लगाया गया है।

6.4 आदिवासी आबादी के लिए संवैधानिक तथा वैधानिक सुरक्षा

1. संविधान की पांचवी अनुसूची में संक्षेप में यह बताया गया है कि देश के अनुसूचित भाग जहा आरक्षित वन  में अनुसूचित जनजाति प्रवास करती है ऐसे क्षेत्र को राज्य के राज्यपाल द्वारा संगठित ऐसी जनजाति सलाहकार समिति जिसमें अनुसूचित भाग या उस खास आरक्षित वन समुदाय के सदस्य शामिल है द्वारा प्रशासित किया जाएगा। दुर्भाग्यवश भारत में ऐसा नहीं हुआ है। इसके विपरीत खनन के लिए वनों को पट्टे पर दे दिया गया है जिससे जनजाति समुदाय को अपने घर का त्याग करना पड़ा है।

2. संविधान की नौवीं अनुसूची में यह प्रावधान है कि ऐसी खेती लायक जमीन जिस पर हजारों वर्ष से उच्च जाति का कब्जा है को सरकार द्वारा वापस लेकर भारत के भूमिहीन लोगों को वितरित कर दिया जाना चाहिए क्योंकि भूमि राजस्व राज्य का विषय है इसीलिए इस संबंध में राज्यों को भूमि सीमा कानून बनाकर जमींदारों से जमीन हासिल कर भूमिहीन किसानों जो सदियों से जमींदारों के खेतों में काम करते आए हैं को वितरण करना था। दुर्भाग्यवश इस संबंध में 3 राज्यों जम्मू-कश्मीर पश्चिम बंगाल तथा केरल ने 1955 तक इस संवैधानिक व्यवस्था पर भूमि सीमा कानून बनाकर इसे लागू किया था। पश्चिम बंगाल में जातेदार( जमींदारों) ने सरकार तथा भूमिहीन किसानों को भूमि संबंधित कागजातों में हेराफेरी ढगनें  का प्रयास किया। जिसके फलस्वरूप नक्सलवादी गांव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में एक विद्रोह की शुरुआत हुई। केरल में गैर पहाड़ी जिलों में भूमि सीमा कानून को सफलतापूर्वक लागू किया गया जिससे माओवादियों आंदोलन करने में सफलता नहीं मिली।

3. पेशा अधिनियम 1996 - राजनीतिक रूप से यह अधिनियम आदिवासी समुदाय को प्रशासन ने सशक्त अधिकार प्रदान करता है तथा स्थानीय प्राकृतिक स्रोतों पर इस समुदाय के परंपरागत अधिकार को मानता है। यह अधिनियम न केवल आदिवासी समुदाय के रीति रिवाज ,सामाजिक तथा धार्मिक व्यवहार और सामुदायिक स्रोतों का परंपरागत प्रबंध स्वीकार करता है बल्कि राज्य सरकारों को इस व्यवस्था के प्रतिकुल नियम न बनाने हेतु भी निर्देश देता है। समुदाय के लिए एक स्पष्ट भूमिका को स्वीकार करने हेतु यह अधिनियम स्थानीय ग्राम सभा को विस्तृत अधिकार प्रदान करता है जिससे देश के विधि निर्माताओं द्वारा आज तक उन्हें वंचित रखा गया था।

   तथापि यथार्थ स्थिति बहुत भिन्न है जिसमें पेसा को एक कागजी शेर बना दिया गया है जिसके लिए दो कारण प्रमुख है। पहला आदिवासी समुदाय के प्रति सरकारी तंत्रों का तिरस्कार पूर्ण रवैया तथा दूसरा राज्य सरकार के अन्य कई कानून जो पेसा कानून के विरोध है।

  पेसा अधिनियम ग्रामीण इलाकों के लिए है। शहरी अनुसूचित क्षेत्र के लिए इस प्रकार की समान विधि व्यवस्था के बारे में चर्चा तक नहीं की गई है। इस स्थिति का फायदा उठाते हुए राज्य सरकार आदिवासी क्षेत्र में खनन एवं उद्योग के लिए तत्काल अनुमति दे रही है। यह कार्य करने की प्रक्रिया बहुत ही साधारण है- पेसा के प्रावधानों जो किसी योजना के लिए ग्रामीण समिति से सहमति लेना अनिवार्य बनाते हैं को नकारने के लिए अनुसूचित क्षेत्र में स्थित ग्रामीण पंचायत को शहरी पंचायत में परिवर्तित कर दिया जाता है।

 विगत कुछ वर्षों के दौरान 600 से ज्यादा ग्रामीण पंचायतों को जिसमें अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र में स्थित है कोई शहरी स्थानीय क्षेत्र का दर्जा दे दिया गया है तथा इन परिवर्तित क्षेत्रों में कई बड़े औद्योगिक निवेश की योजना है।

4. वन अधिकार अधिनियम 2006 : इस अधिनियम में अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत रूप से रहने वाले समुदायों के जो कई पीढ़ियों से वनों में रहते आ रहे हैं परंतु उनके अधिकारों को स्वीकार नहीं किया गया या वन‌ में रहने के अधिकार को अधिकृत माना गया है। वह अधिनियम जीवन यापन के लिए वन के ऊपर निर्भर समुदायों के भूमि अधिकार को सुरक्षित कर उनकी स्थिति को सुधारने के लिए एक महत्वपूर्ण व्यवस्था है। इस अधिनियम के बनने से पहले ऐसे लगभग 40 लाख आदिवासी लोग थे जिन्हें अपनी भूमि के ऊपर कानूनी अधिकार नहीं था।

इस अधिनियम को प्रभावशाली रूप से लागू करने में कुछ प्रमुख अड़चनें हैं जैसे - अधिकांश दावों को अस्वीकार करना समुदायों के अधिकार तथा खासकर पीवीटीजी के प्रभाव अधिकार को मान्य बनाने में और अपर्याप्त सफलता, पंचायत स्तर पर ग्राम सभा  की बैठकों का आयोजन खास साक्ष्य की मांगों ,को स्वीकार कर सूचना नहीं भेजना तथा उपरोक्त जानकारी।

5. अनुसूचित जाति /जनजाति अत्याचार विरोधी अधिनियम 1989- 30 जनवरी 1990 को इस कानून को बनाने का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जाति /जनजाति के सदस्य के खिलाफ अत्याचार को रोकने ,ऐसे अपराधों के लिए विशेष न्यायालय की व्यवस्था करना ,पीड़ितों को मदद देने तथा उनका पुनर्वास करना तथा इससे संबंधित विषयों का निपटारा करना था।

6. नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम (भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास अधिनियम 2013 में पारदर्शिता और मुआवजे का हक)- भारत में रहने वाले प्रभावित लोगों को मुआवजा देना और उनका पुनर्वास शामिल है। इस अधिनियम में जिस व्यक्ति से भूमि अधिग्रहण की जाती है उन्हें उचित मुआवजा देने का ,उद्योग या मकान या अन्य सुविधाएं प्रदान करने हेतु बनी योजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना तथा प्रभावित व्यक्तियों का पुनर्वास करने का प्रावधान है। आधुनिक भारत में नागरिक व्यक्तिगत साझेदारी योजना द्वारा विस्तृत तौर पर औद्योगिककरण की योजनाओं के लिए भूमि अधिकरण हेतु बनाए गए नियमों को यह अधिनियम बल प्रदान करता है।

6.5 क्या किया जाना चाहिए?

हमारा उद्देश्य अत्यंत गरीबी तथा बढ़ती बेरोजगारी को समाप्त कर वामपंथी उग्रवाद को खत्म करना है। नौजवान पुरुष तथा महिलाएं जो इस विकट परिस्थिति से निकलने के प्रति और आशान्वित होते हैं के दिमाग में आक्रोश क्रोध तथा निराशा का एक मिश्रित है शक भाव पैदा हो जाता है। हाशिए पर रह रहे लोगों को वैश्विक आर्थिक मुख्यधारा में शामिल करने हेतु विकास का उद्देश्य गरीबी को दूर करना एकीकृत समाज को बढ़ावा देना तथा सामाजिक न्याय देने हेतु निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:

1. संघर्ष प्रभावित समुदायों की न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा कर उनकी स्थानीय परंपराओं एवं भावनाओं के प्रति संवेदनशील बनाना।

2. समुदाय विकास ,कुशासन ,सेवा प्रदान करना ,मानव अधिकार तथा राजनीतिक समस्याओं के निवारण जैसे विषयों पर जोर दिया जाना चाहिए।

3. सुरक्षात्मक विधियों का प्रभावशाली अनुपालन।

4. निष्कर्ष निकालने हेतु लगातार बातचीत।

5. मूलभूत सुविधाओं को सुधारने पर ज्यादा से ज्यादा निवेश।

6. आदिवासी अधिकारों की सुरक्षा।

7. ऐसे इलाकों में निवेश को बढ़ाने हेतु कर में छूट देकर रोजगार अवसरों को बढ़ाना।

8. सामाजिक सुरक्षा तथा जीवन यापन सुरक्षा को सुनिश्चित करना।

9. शिक्षा एवं खाद्य सुरक्षा।

10. भूमि सुधार तथा मूलभूत सुविधाओं से संबंधित योजनाओं का सम्मान वितरण।

11. उग्रवादियों के साथ सार्थक बातचीत।

12. लोकहित।

13. भ्रष्टाचार विरोधी प्रयास।

14. राजनीतिक वंचन सामाजिक तथा सांस्कृतिक अपमान सरकारी तंत्र द्वारा हिंसा मानवाधिकार का उल्लंघन तथा सामाजिक अत्याचारों को खत्म करना।

15. श्रम कानून का प्रभावशाली अनुपालन तथा न्यूनतम मजदूरी को सुनिश्चित करना।














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